जीने की कला

जैसे - जैसे तेरी भी सीरत संवरती जायेगी ;
ख़ुश्बुओं - सा दूर तक तुझको हवा फैलायेगी .

बन्द हैं जो खिड़कियाँ , तुम जितना खोलोगे उन्हें ;
रौशनी घर में तेरे भी उतनी बढ़ती जायेगी .

पास में जो रंग हैं उनको ख़्वाब में ढंग से भरो ;
धीरे - धीरे इक हसीं तस्वीर बनती जायेगी .

तुम हुकूमत ख़ुद पे करना सीख लोगे जितना ही ;
सल्तनत दुनिया में तेरी उतनी बढ़ती जायेगी .

फ़लसफ़ा तेरा अगर होगा न जीवन से जुड़ा ;
तेरी हर इक सोच बस बकवास बन रह जायेगी .

गफलतों में जी के तू ख़ुद को सिकन्दर मत समझ ;
ख़ाली हाथों ज़िन्दगी इक दिन फ़ना हो जायेगी .

इस जहाँ की बेहतरी के वास्ते कुछ कर गुज़र ;
जाने फ़िर ये ज़िन्दगी हाथ आयेगी , ना आयेगी .

 (शब्दार्थ - सीरत = आन्तरिक सौंदर्य ,
फ़लसफ़ा = दर्शन / फिलोसोफी , फ़ना = नष्ट )

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