भरपूर इनायत है

पीठों से पेट चिपके , ग़ुरबत की इनायत है ;
आँखों में ख़्वाब ज़िन्दा , रहबर की इनायत है .

कुछ मर रहे हैं भूखे , कुछ फूल रहे खा के ;
बेशर्म ख़ब्तियों की , प्लानिंग की इनायत है .

नंगे हैं खिलखिलाते , रोते उसूल वाले ;
बहुमत ठगा - सा भटके , सिस्टम की इनायत है .

कुछ अहमकों के चलते , ये मुल्क़ तक बंटा है ;
पाटे न पटे खाईं , मज़हब की इनायत है .

रुख भांप कर हवा का , जो चाल बदल लेते ;
झण्डे उन्हीं के फहरें , तिकड़म की इनायत है .

कितने ही बांगड़ू हैं , पैदाइशी ख़लीफ़ा ;
भेड़ों को हांकते हैं , किस्मत की इनायत है .

तन - मन सुलग रहा है , फिर भी न उबलते हम ;
नामर्द जेहनियत की , भरपूर इनायत है .



( शब्दार्थ ~~ इनायत = कृपा , ग़ुरबत = दरिद्रता ,
रहबर = अगुआ / नेता , ख़ब्तियों = पागलों , अहमकों =
पागलों ,बांगड़ू = मूर्ख , ख़लीफ़ा = नेता , जेहनियत = सोच )

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