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Showing posts from July, 2012

सलाह लें ,पर संभल कर…..

एक  बार एक आदमी अपने छोटे से बालक के साथ एक घने जंगल से जा रहा था!   तभी रास्ते मे उस बालक को प्यास लगी ,  और उसे पानी पिलाने उसका पिता उसे एक  नदी पर ले गया , नदी पर पानी पीते पीते अचानक वो बालक पानी मे गिर गया ,  और डूबने से उसके प्राण निकल गए!   वो आदमी बड़ा दुखी हुआ,  और उसने सोचा की इस घने जंगल मे इस बालक की अंतिम क्रिया किस प्रकार करूँ ! तभी उसका रोना सुनकर एक गिद्ध ,  सियार और नदी से एक कछुआ वहा आ गए ,  और उस आदमी से सहानुभूति व्यक्त करने लगे ,  आदमी की परेशानी जान कर सब अपनी अपनी सलाह  देने लगे! सियार ने लार टपकाते हुए कहा ,  ऐसा करो   इस बालक के शरीर को इस जंगल मे ही किसी चट्टान के ऊपर छोड़ जाओ, धरती  माता इसका उद्धार कर देगी!   तभी गिद्ध अपनी ख़ुशी छुपाते हुए बोला,    नहीं धरती पर तो इसको जानवर खा जाएँगे,     ऐसा करो इसे किसी वृक्ष के ऊपर डाल दो ,ताकि सूरज की गर्मी से इसकी अंतिम गति अच्छी होजाएगी!    उन दोनों की बाते...

ऑल्टो कार वाले की औकात

पंडितजी शिकायत कर रहे थे कि ऑल्टो वाले कस्टमर बहुतै चिरकुट होते हैं। नई कार की पूजा कराने के पांच सौ भी ऐसे देते हैं जैसे अहसान कर रहे हों। एस एक्स फोर वाले दो हजार की रकम यूं ही देकर चले जाते हैं। कारें पर्सनैलिटी ही नहीं बतातीं, अर्थव्यवस्थाएं भी बताती हैं। ऑल्टो वाला एवरेज पर झांय-झांय करता है। एस एक्स फोर वाला स्टाइल के मसलों की तहकीकात करता है। बीएमडब्लू वाला ये भी देखता है कि कहीं बहुत ज्यादा लोग तो नहीं लेकर टहल रहे हैं इस कार को। ऑल्टो वाला मगन रहता है ये सोचकर कि खूब बिकती है ये कार, सो इसके कल पुरजे सब जगह सस्ते टाइप्स मिल जाते हैं। बीएमडब्लू वाले को अगर ये पता लग जाए कि इसके कल पुरजे भी उतनी ही दुकानों पर मिल रहे हैं, जितनी दुकानों पर ऑल्टो के मिलते हैं तो बीएमडब्लू वाले का दिल डूब सकता है। ऑल्टो वाला किसी आम मोटरसाइकल के साथ भी फ्रेंडली हो सकता है लगभग आसपास का ही मामला है। पर बीएमडब्लू कार वाला ऑल्टो वाले के साथ भी फ्रेंडली नहीं होता। हालांकि रोल्स रॉयस वाला बीएमडब्लू वाले के साथ वैसा ही सलूक करता है जैसा सलूक बीएमडब्लू वाला ऑल्टो वाले के साथ करता है। ऑल्ट...

असफलता जीवन का एक हिस्सा है

एक आदमी कहीं से गुजर रहा था, तभी उसने सड़क के किनारे बंधे हाथियों को देखा, और अचानक रुक गया. उसने देखा कि हाथियों के अगले पैर में एक रस्सी बंधी हुई है, उसे इस बात का बड़ा अचरज हुआ की हाथी जैसे विशालकाय जीव लोहे की जंजीरों की जगह बस एक छोटी सी रस्सी से बंधे हुए हैं!!! ये स्पष्ठ था कि हाथी जब चाहते तब अपने बंधन तोड़ कर कहीं भी जा सकते थे, पर किसी वजह से वो ऐसा नहीं कर रहे थे. उसने पास खड़े महावत से पूछा कि भला ये हाथी किस प्रकार इतनी शांति से खड़े हैं और भागने का प्रयास नही कर रहे हैं ? तब महावत ने कहा, ” इन हाथियों को छोटे पर से ही इन रस्सियों से बाँधा जाता है, उस समय इनके पास इतनी शक्ति नहीं होती की इस बंधन को तोड़ सकें. बार-बार प्रयास करने पर भी रस्सी ना तोड़ पाने के कारण उन्हें धीरे-धीरे यकीन होता जाता है कि वो इन रस्सियों नहीं तोड़ सकते,और बड़े होने पर भी उनका ये यकीन बना रहता है, इसलिए वो कभी इसे तोड़ने का प्रयास ही नहीं करते.” आदमी आश्चर्य में पड़ गया कि ये ताकतवर जानवर सिर्फ इसलिए अपना बंधन नहीं तोड़ सकते क्योंकि वो इस बात में यकीन करते हैं!! इन हाथियों की...

Romancing the Rains ....

The dark rumbling clouds turned the lifeless sky into an abode of ash coloured sailing ships – moving towards an unknown destination. Fortunately for us, these water-bearers finally turned towards Delhi. It seems that the Rain Gods have finally listened to our prayers, and the long wait for the Monsoons is at last over. Delhiites can now feel the breezy weather outside and hear the huge drops on the thirsty ground. The dust-laden lack-lustre buildings, forlorn trees and wilting flowers will get a squeaky-clean makeover and a lease of fresh life after being scorched by unrelenting heat and sultry humidity. The cool breeze, out of the blue, changes our dreary mood to bubbly and vivacious. Interestingly, the rains knocked the door of Delhi exactly a day after the Meteorological Department was slammed by the Central government for inaccurate predictions! Now, India Gate, located in the heart of the capital, will be visited by families and friends to enjoy the pleasant ...

Hum ne aaj....

Hum ne aaj kuch sach likhne ki himmat ki hai Koi jadoo nahi! hum ne tum se dosti ki hai Woh ek lamha bhi jo teri yaad ke bina guzra Us pal mein hum ne khud se bhi nafrat ki hai Har shakhs milta hai aaker hume khuloos se Baat meri soorat ki nahi! baat to seerat ki hai Tum se pahle koi bhi na aa saka wahaan Dost jis dil pe aaj tum ne hukumat ki hai Ye mere dil ka dard kam kyun nahi hota Aie dil hum ne kya dukhon se ulfat ki hai Sazaa milegi tum ko bhi iss faisle ke baad Mere zameer ne sach bolne ki jurrat ki hai Kya karoon ! woh to dosti ka matlab bhi nahi janta Dil-e-Nadan hum ne kis shakhs se dosti ki hai

Tu jaane na ki kaun hai tu

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Tu jaane na ki kaun hai tu, phoolo ke Gulistan ka sartaj hai tu, honge gulshan me gul hazaar, in gulo ka gulaab hai tu, Tu na jane ki kaun hai tu, sangeet jaisi awaz ka sur-taal hai tu, Hoti hai jab amaawas ki raat to, Ugte huye suraj ka ahsaas hai tu, Tu na jane kaun hai tu udasi bhare chero ki mushkan hai tu hote hai jb gam k badal asman me th baadlo k beech se nikalta hua chand hai tu….. Tu Jaane na ki kaun hai tu, Oss ki boondo jaisi taajgi ka ehsaas hai tu, aati hai jab mere hoto pe udasi ki aahat, hasta hu fir bhi,us hasi ka raaz hai tu, Tu jaane na ki kaun hai tu, Dhadkate dilo ki baichani ka naam he tu, Tanhai me jab band hoti hai palke meri, bahte huye ashko ka sailaab hai tu, Tu na jaane ki kaun hai tu mahakati hui garm saanso ka guman hai tu, Tadpta raha pane ki chahat me jisko umar bhar, Wo reshmi khwaabo ka gunahgaar hai tu, Tu na jaane kaun hai tu, Dil ko jo sakoon he,wo awaj hai tu, yu to suni hai sangeet bahut maine, sargam se bhi kh...

सपनो की दुनिया से थोडा बाहर तो आइये

सपनो की दुनिया से थोडा बाहर तो आइये , कैसा है जनाब का हाल तो सुनाइये ! सपने तो सपने है हकीकत जमीनी है , कदम -कदम पे धोखे देगी जिन्दगी बड़ी कमीनी है , उतार के आसमान से जिन्दगी को जरा धरती पे ले आइये ! उतार के चश्मा आँखों का असलियत को निहारो , जो जमीनी हकीकत है ना तुम उसको ही बिसारो , सच का सामना कीजिये ना सपने हरदम देखे जाइए ! गर होंगे सितारे गर्दिश में तो जमाना साथ खड़ा होगा , वक़्त बुरा जब आएगा तो अकेला कहीं पड़ा होगा , जमीं पर कभी न देख लो ना सदा आसमान को तुम निहारिये ! दो जून की रोटी से जूझना है जिन्दगी तेरी , बे वक़्त मौत से लड़ना है जिन्दगी तेरी , छोड़ के सपनों का बिस्तर '' नामा '' हकीकत की चादर बिछाइये !

कोई सरफिरा मिल गया तो क्या कीजियेगा

हजूर इस कदर भी इतराइए कोई सरफिरा मिल गया तो क्या कीजियेगा, दर्द अपने इतने भी न सुनाइए कोई दिलजला मिल गया तो क्या कीजियेगा ! हर वक़्त राग जो तुम दुखों का गाओगे कभी आशिक कभी पागल तो कभी दीवाना कहलाओगे गर किसी मोड़ पे कोई आपसे ज्यादा तडपता मिल गया तो क्या कीजियेगा ! दबा के इन शोलों को सीने में अपने अंगार बना लीजिये , उजड़ी हुई अपनी इस दुनिया को फिर से सजा लीजिये , वक़्त बीतने के बाद कोई हमसफ़र न मिला तो क्या कीजियेगा ! दुनिया नयी अपनी उनहोंने बसा ली तो क्या हुआ, दूर होकर छीन खुसिया तो क्या ली तो क्या हुआ , अपनी ख़ुशी के वास्ते गम कोई गर तुम्हारे भुला गया तो क्या कीजियेगा ! अपनी दुनिया में वो खुशियों को ना कभी तरसे , हर वक़्त उनपे खुदा की रहमत ही रहमत बरसे , उनको चाहने वालो की कतार में ही लगा खुदा मिला तो क्या कीजियेगा !

जीने की कला

जैसे - जैसे तेरी भी सीरत संवरती जायेगी ; ख़ुश्बुओं - सा दूर तक तुझको हवा फैलायेगी . बन्द हैं जो खिड़कियाँ , तुम जितना खोलोगे उन्हें ; रौशनी घर में तेरे भी उतनी बढ़ती जायेगी . पास में जो रंग हैं उनको ख़्वाब में ढंग से भरो ; धीरे - धीरे इक हसीं तस्वीर बनती जायेगी . तुम हुकूमत ख़ुद पे करना सीख लोगे जितना ही ; सल्तनत दुनिया में तेरी उतनी बढ़ती जायेगी . फ़लसफ़ा तेरा अगर होगा न जीवन से जुड़ा ; तेरी हर इक सोच बस बकवास बन रह जायेगी . गफलतों में जी के तू ख़ुद को सिकन्दर मत समझ ; ख़ाली हाथों ज़िन्दगी इक दिन फ़ना हो जायेगी . इस जहाँ की बेहतरी के वास्ते कुछ कर गुज़र ; जाने फ़िर ये ज़िन्दगी हाथ आयेगी , ना आयेगी .   ( शब्दार्थ - सीरत = आन्तरिक सौंदर्य , फ़लसफ़ा = दर्शन / फिलोसोफी , फ़ना = नष्ट )

पश्चाताप

कुछेक रोज़ अंधेरों का शौक क्या पाला ; तमाम उम्र उजालों से हाथ धो डाला . गुरूर चार दिन का ओढ़ लिया था मैंने ; सुकून ज़िन्दगी भर का तभी से खो डाला . चाह मुझमें भी नगीनों की थी मगर मैंने ; खान में घुस के कभी ख़ाक को नहीं चाला . धूप से बच के निकलने को हुनर क्या माना ; फिर कभी छाँव से हरगिज़ नहीं पड़ा पाला . खिड़कियाँ मैंने अपने घर में बनाईं ही नहीं ; बेवजह रौशनी के सिर पे दोष मढ़ डाला . वक्त जब हाथ में था मैंने तवज्जो न करी ; वक्त ने रूठ के मेरा मज़ाक कर डाला .

पेट के ख़ातिर

हमनें जिन्हें चुना था कभी पेट के ख़ातिर ; वो हमको ही खाने लगे हैं पेट के ख़ातिर . धरती निचोड़ कर के बढ़े हो तो छाँव दो ; क्यों ताड़ बन खड़े हो महज़ पेट के ख़ातिर . माँ - बाप ने जिनको पढ़ाया पेट काट के ; बच्चे पहुँच से दूर बसे पेट के ख़ातिर . मैं जिसके दिल - दिमाग में बसता था रात - दिन ; वो इक धनी से ब्याह उठी पेट के ख़ातिर . जो भी उसूल हमनें बनाए थे जोश में ; सब धीरे - धीरे बिकते गए पेट के ख़ातिर . ग़र नींद उसे ख़्वाब में दावत खिलाये तो ; सोता रहे गरीब सदा पेट के ख़ातिर . आँखों में भूख ले के भटकती थी दर - ब - दर ; पगली का पेट फूल गया पेट के ख़ातिर .

भरपूर इनायत है

पीठों से पेट चिपके , ग़ुरबत की इनायत है ; आँखों में ख़्वाब ज़िन्दा , रहबर की इनायत है . कुछ मर रहे हैं भूखे , कुछ फूल रहे खा के ; बेशर्म ख़ब्तियों की , प्लानिंग की इनायत है . नंगे हैं खिलखिलाते , रोते उसूल वाले ; बहुमत ठगा - सा भटके , सिस्टम की इनायत है . कुछ अहमकों के चलते , ये मुल्क़ तक बंटा है ; पाटे न पटे खाईं , मज़हब की इनायत है . रुख भांप कर हवा का , जो चाल बदल लेते ; झण्डे उन्हीं के फहरें , तिकड़म की इनायत है . कितने ही बांगड़ू हैं , पैदाइशी ख़लीफ़ा ; भेड़ों को हांकते हैं , किस्मत की इनायत है . तन - मन सुलग रहा है , फिर भी न उबलते हम ; नामर्द जेहनियत की , भरपूर इनायत है . ( शब्दार्थ ~~ इनायत = कृपा , ग़ुरबत = दरिद्रता , रहबर = अगुआ / नेता , ख़ब्तियों = पागलों , अहमकों = पागलों ,बांगड़ू = मूर्ख , ख़लीफ़ा = नेता , जेहनियत = सोच )