वो ओढ़ते हैं दुपट्टे को जो लहरा करके...

तुम कहाँ जा रहे हो, घर में अँधेरा कर के |

ठहरो-ठहरो  की चले जाना, सवेरा कर के ||

दिल तो तोडा ही था, चुपके से निकल जाना था |

क्या मिला तुमको, ज़माने में ढिंढोरा कर के ||

प्यार दे या न दे, पहचान तो दे दे मेरी |

 खुद को खो बैठा, तेरे दिल में बसेरा कर के ||

दिल वो पागल,जो कुल्हाड़ी पे पैर  देता है |

रौशनी ढूंढता है, घर में अँधेरा कर के ||

इस अदा को मै किस अंदाज़ में बयान करूँ |

नींद बक्शी है, मगर खवाब पे पहरा कर के ||

ये सियासत का नगर है, यहाँ का चारागर भी |

दावा तो देता है, मगर ज़ख्म को गहरा कर के ||

न पूंछो कितने दिलों पर हैं बिजलियाँ गिरतीं |

वो ओढ़ते है दुपट्टे को, जो लहरा कर के ||

तू तो दरिया है "सौरभ", तेरी क्या बिसात रही |

इश्क चाहे तो, समंदर को भी सेहरा कर दे ||
-शेषांत सौरभ

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