फिर मेरे दिल में इन्कलाब आया....

रात फिर मुझको तेरा खाब आया |

रंग गोरा लिए गुलाब आया  ||

फिर कहीं तूने ली है अंगड़ाई |

फिर मेरे दिल में इन्कलाब आया ||

तेरी जुल्फों से बरसती है बाला की खुशबू |

तुझसे होकर के ही, फूलों पे है शबाब आया ||

फिर से काजल लगा लिया तूने |

फिर से खतरे में माहताब आया ||

तेरे आँचल को छू लिया था कभी |

पूंछ मत किस कदर अजाब आया ||

सवाल इतना था, की हुस्न किसे कहते हैं |

जवाब खुद में लाजवाब आया ||

फिर से आँचल गिरा दिया तूने |

फिर से तूफ़ान कोई आज आया ||

जब से इन नरगिसी आँखों में "सौरभ" डूबा हूँ |

पी नहीं फिर भी, नशा मुझको बेहिसाब आया ||

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