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Showing posts from September, 2012

एक अनुभव ...!!! मेरी दक्षिण यात्रा

13 तीयदी चेन्नई, कोवलम कन्याकुमारी बन्नो .येनके स्थानम इस्तापतू वराले वराले नलद स्थलम. काडाली आडीता नल्ल climate सुगम उनडे .कडल तीरमाला वेलर वेलर वलद. नी आवडे पोगमन नल्ले स्थलम. वराले वराले नलद स्थलम ... ओह अईयो , दैईवा सैईद (सॉरी)!!!! क्षमा करे !!! मै मलयालम और तमिल में ही बताने लगा.वैसे मैंने उस भाषा मे लिखा है कि 13 तारीख को हम चेन्नई, कोवलम कन्याकुमारी गए. ये जगह बहुत ही खूबसूरत है. समुद्र के किनारे का मौसम बहुत अच्छा है. ऊची उठती लहरे बहुत अच्छी लगती है. आप भी यहाँ जरुर जाईएगा. बहुत अच्छी जगह है....!!! इतना ही नही दक्षिण भारत के मंदिर, खान पान, समुद्री किनारा  रहन सहन सभी कुछ अलग है पर बहुत अच्छा है. चेन्नई से महाबली पुरम का लगभग सडक से 1 धंटे का रास्ता है. सडको के किनारो पर लगे नारियल के पेड, छोटे छोटे मंदिर, मूर्तियो का काम अनायास ही हमारा ध्यान अपनी तरफ आकर्षित कर लेते हैं.एक और बात जो थोडी हट कर दिखाई दी वो थी लोगो के घरो का रंग गहरा और चटक. गहरा हरा, पीला, नीला बैंगनी कोई भी रंग हो सभी पर  आमतौर पर चटक ...

साथ छोड़ कर भागी ममता.....

साथ छोड़ कर भागी ममता,अब क्या होगा रे नज़र आ रहा सूरज ढलता, अब क्या होगा  रे नहीं मुलायम,रहते कायम,अपने  वादों पर नज़र बड़ी आवश्यक रखना,गुप्त इरादों पर उनका सपना,पी एम् पद का,अब क्या होगा रे नज़र आरहा सूरज ढलता,अब क्या होगा रे माया महा ठगिनी हम जानी,आनी जानी है कब इसका रुख बदल जाए, ये घाघ पुरानी है यदि उसने जो पाला पलता,तब क्या होगा रे नज़र आ रहा सूरज ढलता,अब क्या होगा रे अब तो करूणानिधि से ही करुणा की आशा है सी बी आइ का दबाब भी अच्छा  खासा है साम दाम से काम न बनता,तब क्या होगा रे नजर आरहा सूरज ढलता,अब क्या होगा रे  सब चीजों के दाम बढ़ गए,जनता है अकुलायी सुरसा जैसी मुख फैलाती,रोज रोज मंहगाई साथ छोड़ देगी यदि जनता,तब क्या होगा रे नज़र आरहा सूरज ढलता,अब क्या होगा रे.

मेरे सनम कर दे........

मेरे दर्द की दवा आज कोई मेरे सनम करदे, थोडा मुस्करा के मेरे गम को कम करदे | तेरी मेहरबानी मुझपे सनम अगर हो जाये , मेरे लिए आसान जिन्दगी की डगर हो जाये , कट जायेगा सफ़र जिन्दगी का तू अगर मेरे क़दमों के संग कदम धरदे | बिना तेरे साथी जिन्दगी मेरी अधूरी सी है, जिन्दा है लेकिन सांसों से दुरी सी है, मुदत्तों से मुर्दा पड़े इस जिस्म में थोडा सा दम भरदे| यादों के साये आज मेरे चारों ओर घूमते है, तेरी जुल्फों के बादल आज भी मेरे सीने को चूमते हैं, तेरी इन मद मस्त आँखों की मस्ती को मेरे जख्मों का मरहम करदे| साथ जो मिले गर तुम्हारा मेरी जिन्दगी संवर जाये, तुझको पाकर मेरा जीवन खुशियों से भर जाये , भुला के आज ये सारे गम आँखे मेरी ख़ुशी से नम करदे | दर्द ए जुदाई अब और नही सह सकेंगे, तेरे सिवा और किसी से न कह सकेंगे , आ जाओ इससे पहले पहले की की मौत मुझे बेदम करदे | ये दिल तुम बिन दर्दो गम से आहें भरेगा , जख्मी दिल की दवा तुम बिन कौन करेगा , " सौरभ " पे रहम तू थोडा आज सनम कर दे ||

अच्छा सा लगाने लगा है उनका ख्याल मुझे......

अच्छा सा लगाने लगा है उनका ख्याल मुझे , खो न जाऊं यादों में उनकी ए दिल जरा संभाल मुझे दिखने लगा है उनका ही चेहरा अब रात दिन , न आये चैन जरा इक पल भी उनके बिन ख्यालों से उनके जरा बाहर निकाल मुझे ! मुझको दीवाना ना बनादे कहीं सादगी उनकी होश ना उड़ा दे कहीं ये बानगी उनकी सपनो में आक़र भी वो रातों को कर देते है बेहाल मुझे ! हसरत ए दीदार अगर यु बढती ही जाएगी खुमारी सी दिल में जो चढ़ती ही जाएगी इक दिन ये दीवानगी कर देगी कंगाल मुझे ! ना ले इन्तिहाँ मेरा की मेरा सपनों का कतल हो जाये तेरे इन्तजार में सुखा हुआ खेत ,मेरे दिल की फ़सल हो जाये कहीं इन्तजार करते करते '' सौरभ '' इरादा बदल हो जाये !

वो ओढ़ते हैं दुपट्टे को जो लहरा करके...

तुम कहाँ जा रहे हो, घर में अँधेरा कर के | ठहरो-ठहरो  की चले जाना, सवेरा कर के || दिल तो तोडा ही था, चुपके से निकल जाना था | क्या मिला तुमको, ज़माने में ढिंढोरा कर के || प्यार दे या न दे, पहचान तो दे दे मेरी |  खुद को खो बैठा, तेरे दिल में बसेरा कर के || दिल वो पागल,जो कुल्हाड़ी पे पैर  देता है | रौशनी ढूंढता है, घर में अँधेरा कर के || इस अदा को मै किस अंदाज़ में बयान करूँ | नींद बक्शी है, मगर खवाब पे पहरा कर के || ये सियासत का नगर है, यहाँ का चारागर भी | दावा तो देता है, मगर ज़ख्म को गहरा कर के || न पूंछो कितने दिलों पर हैं बिजलियाँ गिरतीं | वो ओढ़ते है दुपट्टे को, जो लहरा कर के || तू तो दरिया है "सौरभ", तेरी क्या बिसात रही | इश्क चाहे तो, समंदर को भी सेहरा कर दे || -शेषांत सौरभ

फिर मेरे दिल में इन्कलाब आया....

रात फिर मुझको तेरा खाब आया | रंग गोरा लिए गुलाब आया  || फिर कहीं तूने ली है अंगड़ाई | फिर मेरे दिल में इन्कलाब आया || तेरी जुल्फों से बरसती है बाला की खुशबू | तुझसे होकर के ही, फूलों पे है शबाब आया || फिर से काजल लगा लिया तूने | फिर से खतरे में माहताब आया || तेरे आँचल को छू लिया था कभी | पूंछ मत किस कदर अजाब आया || सवाल इतना था, की हुस्न किसे कहते हैं | जवाब खुद में लाजवाब आया || फिर से आँचल गिरा दिया तूने | फिर से तूफ़ान कोई आज आया || जब से इन नरगिसी आँखों में "सौरभ" डूबा हूँ | पी नहीं फिर भी, नशा मुझको बेहिसाब आया ||